Sunday, February 26, 2017

इन्सान का सबसे ज़रूरी फर्ज़ - एक कौम और एक जान

एक इन्सान के लिए अपने फर्ज़ [Duty] को समझना सबसे ज़रूरी है.जब तक हमें अपने फर्ज़ का पता नहीं है तब तक हम अपनी ज़िंदगी जी नहीं रहे हैं बल्की उसे सिर्फ काट रहे हैं.अगर आप मुसलमान हैं तो आपके अपने प्रति, अपने परिवार, समाज, देश, सारी उम्मत ए मुहम्मदी और पूरी इन्सानियत के प्रति कुछ फर्ज़ हैं जो आपके लिए ज़रूरी है.क्योंकि इस्लाम ज़िंदगी जीने का मुकम्मल ढंग है इसलिए यह फर्क नहीं पड़ता कि आप अपने फर्ज़ को पूरा करना चाहते हैं या नहीं. अगर आप कलिमा पढ़ कर तौहीद, ख़त्म ए नबूवत, कुरान और सुन्नत पर ईमान ले आए हैं तो आपके लिए ज़रूरी हो गया है कि आप अपने फर्ज़ से भागें नही.

मुसलमान का सबसे ज़रूरी और अहम फर्ज़ है कि वह दुनियावी, दिली और ज़हनी तौर पर सारी 'उम्मत ए मुस्लिमा' के साथ हमदर्दी रखे. आका मदनी *सल्ल'लाहो अलैही व सल्लम* ने सारी उम्माह को एक जिस्म की तरह बताया है. दुनिया भर के दो अरब मुसलमानों को एक दूसरे के दुख दर्द महसूस होनें चाहिएं.एक मुस्लिम अगर सीरिया,फिलिस्तीन और सोमालिया में मरता है तो यह ज़रूरी है कि इंडोनेशिया, कज़ाख़स्तान और बाँग्लादेश के मुसलमान के दिल में दर्द उठे और जो मुमकिन हो वह अपने मुस्लिम भाई-बहनों के लिए करे.

इसके साथ साथ एक अहम फर्ज़ यह भी है कि एक मुस्लिम अपने पड़ोस, बस्ती, मोहल्ले, कस्बे, शहर और इलाके के मुसलमानों के प्रति फिक्रमंद हो. वह उनके दुख दर्द और ख़ुशी के मौकों का साथी हो. आज ज़्यादातर मुसलमान अपने पड़ोसी और मोहल्ले के मुसलमानों से दुश्मनी और नफरत पील लेते हैं जिसकी सिर्फ एक वजह है और वह है हसद/जलन और झूठी शान. हालांकी सबको पता है कि इस्लाम में हसद और झूठी शान दोनों हराम घोषित कर दिए गए हैं.

आज मुआशरे का यह हाल हो चुका है कि एक मुस्लिम अपने सगे भाई से बात नहीं करता, फिर पड़ोसी और मोहल्ले के मुसलमान तो बड़ी दूर के लोग हैं. वजह अक्सर मकान, ज़मीन और जायदाद होते हैं. समझ नहीं आता की कब्र, आख़िरत और कयामत में यकीन रखने वाला मुस्लिम यह क्यों भूल जाता है कि इन में से एक भी चीज़ इस छोटी सी ज़िंदग़ी के बाद साथ नहीं जाएगी. साथ अगर कुछ जाएगा तो आदमी का चरित्र, अमल और फर्ज़ की अदायग़ी जाएगी.

एक मुस्लिम के लिए बेहद ज़रूरी है कि वह सब मुसलमानों के प्रति दिल में मोहब्बत, लगाव और हमदर्दी रखे. जहां तक मुमकिन हो तो दूसरों की गलतियों की बजाय उनकी खूबियों को देखो. हर इन्सान में अच्छे और बुरे गुण होते हैं. यह आप पर निर्भर करता है कि आप सामने वाले का कौन सा गुण देख रहे हैं. अल्लाह कहता है कि तुम मेरे बंदों के प्रति रहमतमंत बनो और मैं तुम्हारे उपर रहमत की निगाह रखूंगा. तुम मेरो बंदों की गलतियों को माफ करो और मैं तुम्हारे गुनाहों को माफ करूंगा.

आज एक मुसलमान के अपने बगल के गैर मुसलमान के साथ तो अच्छे रिश्ते हैं पर मुस्लिम भाई को वह एक नज़र देखना तक नहीं चाहता. अब तो यह रिवाज़ भी चल पड़ा है कि अलग - अलग मस्जिदें बन रही हैं. बेरूखी, बेदिली, और बेदर्दी आज के मुसलमान के ज़हन का हिस्सा बन चुका है. अगर मुस्लमान अपने ज़ाति फायदों और झूठी शान के लिए इस्लाम की रूह यानी कौम्मी इत्तिहाद और एक कौम - एक जान वाली सोच को कत्ल करते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा समाज बिखर जाएगा. आप सब से गुज़ारिश है कि अपने दिलों में कौम के लिए मोहब्बत पैदा करें. पड़ोस और मोहल्ले के मुसलमानों के लिए बुरे और अच्छे वक्त के साथी बनें. हो सकता है कि किसी वजह से आपने बातचीत बंद कर ली हो पर एक दूसरे की मौत और जनाज़े में ज़रूर शामिल हों. जितना जल्दी हो सके दूसरे मुसलमान को को माफ करके एक नई शुरूआत करें. यकीनन अल्लाह आपको कामयाबी देगा...

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