मैने मासूम बहारों में तुम्हे देखा है.
मैने पुरनूर सितारों में तुम्हे देखा है.
मेरे महबूब तेरी पर्दा नशीनी की कसम.
मैने अश्कों की कतारों में तुम्हे देखा है |
कोई भी वक्त हो हंस कर ग़ुज़ार लेता हूँ.
ख़िज़ां के दौर में एहले बहार लेता हूँ.
ग़ुलों से रंग सितारों से रोश्नी ले कर.
जमाल ए यार का नक्शा उतार लेता हूँ|
ये जो दीवाने से दो चार नज़र आते हैं.
इनमें कुछ साहिब ए असरार नज़र आते हैं.
तेरी महफिल का भरम रखते हैं, सो जाते हैं.
वरना ये लोग तो बेदार नज़र आते हैं|
मेरे दामन में तो कांटों के सिवा कुछ नहीं.
आप फूलों के ख़रीददार नज़र आते हैं.
हशर में कौन मेरी ग्वाही देगा सिद्दीक.
सब तुम्हारे ही तरफदार नज़र आते हैं|
मैं फसाने तैयार करता हूँ.
आप उनवान ढूँढ कर लाएं.
आओ वादाकशों की बस्ती से ,
चंद इन्सान ढूँढ कर लाएं|
आज रूठे हुए सनम को बहुत याद किया.
अपने उजड़े हुए ग़ुलशन को बहुत याद किया.
जब कभी ग़र्दिश ए तकदीर ने घेरा है हमें.
ग़ेसू ए यार की उलझन को बहुत याद किया|
उम्र जलवों में बसर हो यह ज़रूरी तो नहीं.
हर शबे ग़म की सहर हो यह ज़रूरी तो नहीं.
नींद तो दर्द के बिस्तर पर भी आ सकती है.
तेरे आग़ोश में सर हो यह ज़रूरी तो नहीं|
आग को खेल पतंगों ने समझ रखा है.
सब को अन्जाम का डर हो यह ज़रूरी तो नहीं.
शेख़ जो करता है मस्जिद में ख़ुदा को सजदे.
उसके सजदों में असर हो यह ज़रूरी तो नहीं|
सब की साकी पे नज़र हो यह ज़रूरी है मग़र.
सब पे साकी की नज़र हो यह ज़रूरी तो नहीं |
★-----------शु----क्रि-----या--------------★
2 comments:
बहुत ख़ूब ।
MashaAllah SubhanAllah
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